1
सच बताएँ,
आखिर क्यों ढोंग करते हो
विकल्पहीन दुनियाँ की
अपनी इस ढलायी पर!
बस उसी तरह, जैसे कि
जिन्दा रहने के लिए
सांस लेना जरूरी है
लेकिन, तुम्हारी इस दुनियाँ में
अकसर वो सांस लेते धर लिए जाते हैं
जैसा कि कोई गुनहगार
गुनाह करते धर लिया जाता है।
2
सच बताएँ
मौन एक बेहतर विकल्प है
इसलिए नहीं कि
इसमें कोई अभिव्यक्ति छिपी है!
बल्कि इसलिए कि
अब हर कथन एक
विकल्पहीन दुनियाँ रचती है।
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हे कविवर! तुम्हें युग-बोध नहीं
हूँ...ऊँ...अब तुम्हारा सौन्दर्यबोध,
बलात्कारी गढ़ रहा है, मानता हूँ
तुम्हारा यह कवित्व-बोध
निश्छल पवित्र महान हो सकता है
लेकिन, यह युग महान तो नहीं!
तुम्हें पता है? इस देह-युग में,
तुम्हारा यह कवित्व-सौन्दर्यशास्त्र
मात्र एक देह की अभिव्यंजना है!
हे कविवर! तुम्हें युग-बोध नहीं,
तुम्हारे कवि-मन के सुकोमल बिम्ब
अब सौन्दर्यबोध नहीं, देह-बोध
जगा जाते हैं ।
सोचो, तुम कवि हो! सभ्यता की
प्रतिमूर्ति हो, लेकिन
तुम्हारे प्रेमविदग्ध प्रेमातुर कवि-मन के
कवित्व-भाव में,
तुम्हारी अभिलाषाएँ आकांक्षाएँ और
विरहदग्ध पीड़ाएँ,
घुल घुलकर, देह बन,
किसी देहातुर को ललचाती हैं।
हाँ कविवर, तुम्हारा सौन्दर्यबोध
अब बलात्कारी गढ़ रहा है!
क्योंकि, तुम्हारे सामने
कोई कवि नहीं, बल्कि
प्रेतात्माएँ फिरा करती हैं, जिन्हें तुम
देह बना जाते हो!
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