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Saturday, December 8, 2012

छाया


छाया, तुमसे दूर, मैं
कहाँ जा पाऊँगा,
चारो ओर से घिरा, क्या
तुम्हें विस्मृत कर पाऊँगा
फिर भी, क्यों,
भटक जाता हूँ,
गैर से क्यों,
अपना पता पूंछता हूँ
छाया, उत्तर दो,
वहां क्यों भीड़ है
किसी का किसी पर
कैसा आरोप है|
छाया, कोई तुमसे
नहीं पूंछता, तुमसे
अधिक, भला और
कौन है जानता|
छाया, देखो तो,
यह कैसा व्यंग्य है,
तुम उसे जानती, वह
तुम्हें नहीं जानता
हाँ, उसके हरदम साथ|
छाया, शायद वह
देख नहीं पाता,
अँधेरे में भी हो,
भनक नहीं पाता
छाया, इसमें भला
तुम्हारा क्या दोष,
अँधेरे में, रहने का
करता वह अभ्यास
छाया, पर दुखी
मत होना, तुम तो
उसके सदैव साथ हो|
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