बस एक अदद कविता!
लिखने के फिराक में हूँ
लेकिन बात नहीं बन पा रही है
क्योंकि, एक अदद जो उम्र थी न,
वही अब, ढलान की ओर है,
फिर कहो, कैसे अब अन्तस् में,
कोई बात, क्योंकर हलचल मचाएगी!
हाँ अब तो, सामने से गुजरती हर बात
बस, एक अजीब सी उदासी के साथ
यूँ ही गुजर जाती है,
लेकिन फिर भी,
मन अब तजुर्बेकार बन चुका है,
जैसे,
राजनीति और नेता, तजुर्बे से सीख
ढलती उम्र में, अकसर
महानता की ओर पहुँच जाते हैं
हाँ ढलती उम्र में, मन के सारे भाव
तजुर्बे के साथ सपाट चेहरे वाले
नेता से बन जाते हैं।
शायद इसीलिए, ढलती उम्र में
कविता नहीं गढ़ी जाती।
--विनय