मेरे डरपने में भी
किसी को निडरपन
मिल जाता है...
हाँ, उनके सामने तो मैं
हाँ, उनके सामने तो मैं
चींटी सा ही हूँ...लेकिन...
हाथी के पैरों तले
कुचल जाने का भय लिए
धीरे-धीरे-
अपनी ही लीक पकड़
उसी पर रेंगता हूँ...
हाथी को, भयभीत देख
थोड़ा ही सही,
मगन भी हो लेता हूँ...
पर, इस
हाथी के डरपने में,
इसकी फूँकों से
बेबस सा, मैं
हवा में उड़ जाता हूँ...
बेशक मैं चींटी हूँ
हाथी नहीं बन पाउँगा...
लेकिन अफ़सोस यही
धूल के इस गुबार में,
कहीं मेरी लीक भी
खो न जाए....
----------------------विनय