वह
शिशुपन मेरा नग्न था
यह नग्नता तब कहाँ थी
कपडों में जब छिपा शिशुपन
यह नग्नता अब निखर गई।
आज
हम जब सयाने हैं, तो
रोना कमजोरी की निशानी है
जन्मते ही तब तो रोना आया
यह भगवान् की बे-ईमानी है।
दुनिया
से सीख कर हँसना
अट्टहास में अब बदला इसे
निश्छल वह खिलखिलाहटें
तमाम चेहरे अब सहम रहे।
खुदा
से पाई नेमतों के
रह रह हमने अर्थ बदले
बैठ अपनी तंग गलियों में
राहगीरों के हम राह बदले।
यह नग्नता तब कहाँ थी
कपडों में जब छिपा शिशुपन
यह नग्नता अब निखर गई।
रोना कमजोरी की निशानी है
जन्मते ही तब तो रोना आया
यह भगवान् की बे-ईमानी है।
अट्टहास में अब बदला इसे
निश्छल वह खिलखिलाहटें
तमाम चेहरे अब सहम रहे।
रह रह हमने अर्थ बदले
बैठ अपनी तंग गलियों में
राहगीरों के हम राह बदले।
-विनय