मैं एक राष्ट्रवादी
हूँ,
मेरा यह बेचारा
राष्ट्रवाद
एक एल ओ सी का मोहताज
है|
तभी तो, एल ओ सी के
पार
देख पड़ोसी, उन्मादित
हो जाता है|
कुरुक्षेत्र के रण
में,
गीता के ज्ञान जैसा
यह
अकसर प्रकट हो जाता
है|
कितना प्रिय! यह एल
ओ सी,
तभी तो, हमने इसके
तमाम घेरे बना लिए
हैं|
कैद कर अपनों को ही
अपनी-अपनी इस एल ओ
सी में
गौरवान्वित, इसे
क्रास नहीं करते हैं|
और यहाँ पहुँच, वह
बेचारा हमारा
राष्ट्रवाद
अकसर सो जाता है|
एल ओ सी के पार का पड़ोसी
निगहबान सैनिकों को
मार
शहीदी-शव हमें सौंप जाता है।
अपनी-अपनी एल ओ सी
में सोया
एक युद्ध का मोहताज
हमारा वह राष्ट्रवाद !
उसे गाहे-बगाहे जगा जाता है|
हमारा वह राष्ट्रवाद !
उसे गाहे-बगाहे जगा जाता है|
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