मैं, और मेरा उद्देश्य
मुझ पर यह कुटिल व्यंग्य
सहन कर इसे
जीवन पग धरता हूं!
पर, इसे पाने के अर्थ-
प्रथम मैं खोजता
अपना अस्तित्व।
यह क्रूर चक्र
इसमें उलझ
होकर दिग्भ्रमित
उद्भ्रांत सा हो जाता हूँ।
हूँ साधना का हेतु, पर
कर इसे विस्मृत
साधक स्वयं बन जाता हूँ !
मुझ पर यह कुटिल व्यंग्य
सहन कर इसे
जीवन पग धरता हूं!
पर, इसे पाने के अर्थ-
प्रथम मैं खोजता
अपना अस्तित्व।
यह क्रूर चक्र
इसमें उलझ
होकर दिग्भ्रमित
उद्भ्रांत सा हो जाता हूँ।
हूँ साधना का हेतु, पर
कर इसे विस्मृत
साधक स्वयं बन जाता हूँ !
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