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Monday, November 30, 2015

जमीन का आदमी

किसी ने एक बार हरी दूब पर
अधलेटे देख मुझे
फेसबुक पर,
जमीन का आदमी बता दिया था
ऐसे में तो बड़ा आसान है
जमीन का आदमी बन जाना

आज सोचता हूँ
उस मखमली दूब को उगाने में
कितने मजदूरों ने
अपना पसीना बहाया था
प्यासे उन मजदूरों ने ही
अपने पसीने से सींच इसे
किसी खुरदुरे जमीन को
समतल भी बनाया था
फिर, बड़े जतन से इसपर
इस मखमली दूब को उगाया था।

और क्षण भर के लिए ही सही
इस मखमली हरी दूब पर अधलेटे
मैं भी, उन मित्र की निगाहों में
जमीन का आदमी बन गया था!

फिर तैयार इस जमीन के
ठेकेदारों के बारे में सोच
मैं मन ही मन मुस्कराया था
कि, मैं भी दूर से
इस पर लेटने चला आया था।

और, वे मजदूर आज भी   
कहीं किसी खुरदरी जमीन पर
हमारे लिए, फिर से   
मखमली दूब उगाने के लिए
मजदूरी ही कर रहे होंगे।

फिर मैं मुस्कराया,
और सोचा, हम सब ऐसे ही
जमीन दर जमीन
जमीन के आदमी बना करते होंगे।
और वे बेचारे मजदूर, हमें भी
अपना ही आदमी समझते होंगे!

                                -विनय (महोबा)