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Tuesday, January 22, 2019

पेटदतहा आदमी

सोचता हूँ अपने साथ

एक खिड़की लेकर चला करूँ

इसके पीछे से अपनी ओर

चुपके से झाँक लिया करूँ  

क्योंकि इस आदमी के

खाने और दिखाने के दाँत

अलग-अलग नहीं होते!

आदमी जानवर भी नहीं

कि सींग और बघनख से

इसे पहचान लिया करूँ।

असल में यह आदमी है

इसके पेट में नुकीले

दाँत उगा करते हैं

यह पेट दतहा आदमी

बड़ी आसानी से

चीजों को चुपचाप

धीरे-धीरे कुतर जाता है।

पर हाँ, अभी कल ही तो

श्रीमती जी ने कहा -

इस धूल गुबार और गर्द भरे

मौसम के जमाने में, भला अब

खिड़कियाँ कहाँ लगा करती हैं,

अगर खिड़कियाँ हैं भी तो

वे खुला नहीं करती, और

मुझे खिड़की खोलने से

मना कर दिया था।

बस मैं समझ गया था

शायद यह पेट-दतहा आदमी

बिन सींग और बघनख के

अब अनपहचाना ही रह जाए!  

     ****

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