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Saturday, March 24, 2012

टकटकी


कब तक पसारेगा हाथ

पत्थर पर के घास

कब तक, जीवन से

लगा रहेगा तेरा आस

नहीं पिघला पाओगे

मन को बहलाओगे

स्वप्न तुम्हारा

जब टूटेगा

देर बहुत हो जायेगा

पर, दोष तुम्हारा क्या

निस्सहाय सा जनक

तुम्हारा पड़ा यहाँ

थोड़ी सी मिटटी में

आस जगाए जहां,

पर, जाओ भूल इसे

प्रस्तर तोड़ न पाओगे

जीवित रह सकते हो

निर्भय नहीं हो पाओगे

हाँ, तुमसा ही लोग

यहाँ के, कृष्गात लिए

टकटकी लगाए बैठे हैं