अकेलापन,
हर कोई एक दूसरे से
अलग-थलग सा है.
कभी, कहीं, कुछ क्षण
निगाहों के ठहर जाने पर
कुछ आस जग जाता है,
हाँ, पहचान बनेगी
एक तस्वीर उभरेगी
लेकिन तिलिस्म यह,
टूट जाता है,
इस झिलमिल परदे पर
बन बिगड़ रहे बिंदुओं में
कोई तस्वीर
खोने लगती है,
लेकिन उसमे, वहाँ पर,
आखिर ऐसा क्या है,
सूरज तो डूब रहा है,
लेकिन, कोने में,
मंडलियों संग,
चाँद भी उभर रहा है,
यह तस्वीर भी तो,
कुछ कहती है, फिर
अपनी ही तस्वीरों में
हम अनपहचाने से,
क्यों हैं?
------------------------------- विनय
अलग-थलग सा है.
कभी, कहीं, कुछ क्षण
निगाहों के ठहर जाने पर
कुछ आस जग जाता है,
हाँ, पहचान बनेगी
एक तस्वीर उभरेगी
लेकिन तिलिस्म यह,
टूट जाता है,
इस झिलमिल परदे पर
बन बिगड़ रहे बिंदुओं में
कोई तस्वीर
खोने लगती है,
लेकिन उसमे, वहाँ पर,
आखिर ऐसा क्या है,
सूरज तो डूब रहा है,
लेकिन, कोने में,
मंडलियों संग,
चाँद भी उभर रहा है,
यह तस्वीर भी तो,
कुछ कहती है, फिर
अपनी ही तस्वीरों में
हम अनपहचाने से,
अनजाने से,
अलग-थलग से क्यों हैं?
------------------------------- विनय
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