Popular Posts

Monday, October 15, 2012

निर्झरिणी


कर नव गुल्म लता तरु पादप
हो नव जीवन, नव उत्फुल्ल तरंग
नव प्राण सजा तुम बहो बहो
ओ निर्झरिणी तुम झरो झरो

शुचि सुन्दर रूप बना
नव उर आशा मनोहर संचित
आप्लावित कर कुलिश परस तुम बहो बहो
ओ निर्झरिणी तुम झरो झरो

परुश मरू के तपते तल को
शीत वरि सा कर सिंचित
स्नेह रूप धर तुम बहो बहो
ओ निर्झरिणी तुम झरो झरो

कर धवल वरि सा निर्मल मन
विराट रूप पाने को आतुर
सागर ओर तुम बहो बहो
ओ निर्झरिणी तुम झरो झरो
--------------------------------------