Popular Posts

Tuesday, July 21, 2015

शब्दों में नहीं ढल पाते हो !

प्रिय! तुम तो..
प्रियतम हो..
शब्दों में नहीं
ढल पाते हो !

यह नख-शिख भी
बने यदि भावभूमि
फिर भी
अकवि सा
क्यों रह जाता हूँ

झील सी
इन आँखों में
ले पतवार,
मगन हो,
क्यों नहीं तिर
पाता हूँ,

पर, मैं जानूँ,
है यह महासमर..!
शब्दों में गढ़
फटे पाल की सी
यह नौका, इसमें
कहाँ  तिर पाएगी?

धूमिल नख-शिख
घुल जाए यह
झील सी इन
आँखों मे,
मिलकर  इनसे ,
पिघला यह
मेरे अन्तस् में,

फिर, बन बूँद
दुलक, आ मिल
इन रुक्ष चट्टानों में ,
यह नख-शिख
बेमानी, जब
आँखों ने देखा
आँखों का पानी!

प्रिय ! हाँ
तुम केवल
प्रियतम हो !
शब्दों में नहीं
ढल पाते हो !
             ------विनय