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Sunday, September 20, 2015

चलनी से छनती यह आजादी...

खोजता है वह आज उसे
जिसे दिया था किसी ने
नाम आजादी!

चमकीली रपटीली सड़कों पर
बेतहाशा भागती यह आजादी
देख उसे ठिठकती नहीं,
न रूकती है यह आजादी
न जाने क्यों घबराई सी
भागती जा रही यह आजादी
वह बेचारा वहीं खड़ा-खड़ा
धूल फाँकता, इसे देखता
ओझल होती जा रही
प्यारी सी वह आजादी 

नहीं समझ पाता है वह     
आसमाँ में भी उड़ती जा रही
उसकी प्यारी सी वह आजादी  
पंखों पर इसके हो सवार वे
उसे उड़ते समझाए जा रहे हैं  
इशारों से चौंधियाया वह   
न जानें किस जमीं पर
बेबस, खोजता जा रहा है वह  
अपनी प्यारी सी आजादी !  

अरे कहाँ उड़ चली है
उसकी यह आजादी
कहाँ से खोज लाए जो
छिप गई हो यह आजादी
कहाँ झाँके कहाँ कहाँ ताके
न जाने किन भवनों में
छिपा दी गई है उसकी
वह प्यारी सी आजादी

रिरियाया और मिमियाया
तो कहीं कहीं छिटकी सी
मिल गई यह आजादी
जैसे किसी चलनी में
चाल दी गई है यह आजादी

नहीं तो. फहराते तिरंगे पर  
बैठी मुस्कुराती दिखा दी गई
यह ज़ालिम सी आजादी !

--------------------------विनय