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Wednesday, October 28, 2015

शिशुपन तो मेरा नग्न था

वह शिशुपन मेरा नग्न था
यह नग्नता तब कहाँ थी
कपडों में जब छिपा शिशुपन
यह नग्नता अब निखर गई।

आज हम जब सयाने हैं, तो
रोना कमजोरी की निशानी है
जन्मते ही तब तो रोना आया
यह भगवान् की बे-ईमानी है।

दुनिया से सीख कर हँसना
अट्टहास में अब बदला इसे
निश्छल वह खिलखिलाहटें
तमाम चेहरे अब सहम रहे।

खुदा से पाई नेमतों के
रह रह हमने अर्थ बदले
बैठ अपनी तंग गलियों में
राहगीरों के हम राह बदले।

                      -विनय

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