इन
उगते सींगों वालों को
तब हम देख लिया करते होंगे
रावण और महिषासुर को
तब पहचान लिया करते होंगे
आसान राम या दुर्गा बनना हमको
विष्णु शेषनाग पर भी जब सोते होंगे।
सहज
नहीं देखना सींगों को
न जाने कहाँ अब ये उगते होंगे
अब भी उगते किसी नाभि में
ये सींग वहीं पर छिपते होंगे
दिग्भ्रमित हम भी अपने लिए
बस इन्हें अमृत ही समझे होंगे।
हम
लिए राम और दुर्गा को
अपने-अपने मंच सजाते होंगे
इन सींगों के उलझे झगड़ों में
अब मंचों पर स्वांग रचाते होंगे।
कैसे
कह दें विजयपर्व इसको
विष्णु ही जब शैय्या पर सोते होंगे
यह नवरात्र शुभदिन कैसे हो
अपने-अपने ईश्वर जब सोते होंगे।
अमृत
समझते नाभि के विष को
जाने ये सींग कहाँ अब उगते होंगे।
तब हम देख लिया करते होंगे
रावण और महिषासुर को
तब पहचान लिया करते होंगे
आसान राम या दुर्गा बनना हमको
विष्णु शेषनाग पर भी जब सोते होंगे।
न जाने कहाँ अब ये उगते होंगे
अब भी उगते किसी नाभि में
ये सींग वहीं पर छिपते होंगे
दिग्भ्रमित हम भी अपने लिए
बस इन्हें अमृत ही समझे होंगे।
अपने-अपने मंच सजाते होंगे
इन सींगों के उलझे झगड़ों में
अब मंचों पर स्वांग रचाते होंगे।
विष्णु ही जब शैय्या पर सोते होंगे
यह नवरात्र शुभदिन कैसे हो
अपने-अपने ईश्वर जब सोते होंगे।
जाने ये सींग कहाँ अब उगते होंगे।
--विनय
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