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Tuesday, October 27, 2015

आदमी खो गया है मेरा

बेचैनी है मुझमें
एक खालीपन सा लिए
फ़लक दर फ़लक
फिरा करता हूँ
ले ले कर तूलिका नित
नए दृश्य उकेरता हूँ


मेरा भागा हुआ आदमी
फलक दर फलक
गढ़ उसी को फिर से     
इन्हीं दृश्यों में उकेरता हूँ  

गायब हुआ वह मेरा आदमी 
फलक दर फलक इसी को   
यहीं पर खोज लिया करता हूँ
खोए अपने इस आदमी से
यहीं मिल अपना वह  
रीतापन भर लिया करता हूँ

हाँ यह तो समझता हूँ
मेरा आदमी खो गया है
जो फलक दर फलक
किसी दृश्य में
चस्पा होने भर के लिए
मुझसे ही भागता है  

पर वह जो आदमी है न,
वह तो अपने ही फलक में   
रहा करता  है!
वह बेदम तो है पर
उसी में जिया करता है
जीने की जद्दोजहद में
फलक दर फलक वह
भागा नहीं करता है

इसी आदमी के हाथों से
छीनकर यह तूलिका, 
रीतते अपने आदमी को
फलक दर फलक, हम   
बरबस भरा करते हैं

मेरी यह बेचैनी, दृश्य भरे  
इन फलकों की ठाँव में
बैठकर वहीँ से सोचती है   
आदमी खो गया इसका, और
फिर मुस्कुरा दिया करती है!
   

    -----------------विनय  

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