सुबह का वह
गुनगुना पन
जिजीविषा के साथ
अंजुरियों में
भर लेना चाहता हूँ
किसी वृक्ष के
घने पत्तों पर फैली
वह धूप !
पत्तियों के झुरमुटों से
झाँकती वह धूप !
उसके कलरव में
इठलाती वह धूप !
किसी रहस्य में
झाँकने को आतुर
वह धूप !
उसे समेट
चेहरे पर उड़ेल
दृष्टिबोध पा
ताजगी का अहसास
पाना चाहता हूँ
वह धूप !
हाँ, उसी को
अंजुरियों में ले
विभ्रम का आवरण
दूर कराना चाहता हूँ |
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