दुनियाँ के पैमानें पहुँचे हैं रिस-रिस कर अन्तस् में...और इन पैमानों से जीवन में पड़ी सलवटों का दर्द अन्तस् से छलक पड़ा है.....
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Friday, February 8, 2013
प्रेम की राह
प्रेम की राह में , मैं बढ़ता गया हूँ
देख तुम्ही को , तुम्ही में ढलता गया हूँ,
तेरे प्रेम में जो अश्क गिरते रहे हैं
पीकर ह्रदय में उन्हें छिपाता रहा हूँ|
ज़माना भी पुकारेगा मुझको तुम्ही सा
तुम्हारे रूप से जब मेरा रूप होगा
देखना प्रेम का यह रूप यूँ ही न होगा
सभी रूप इससे अभिभूत होगा|
दग्ध ह्रदय की ज्वाला भी होगी
सभी पर इसकी खुमारी भी होगी
बजेंगे तार तब, सब इस राग में
गूंजेगा यही तब, सभी में रोर बन के|
मिटेंगे भेद तब सारे जहाँ के
प्यारे सभी होंगे प्यारे सभी के|
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