कभी हवा में हरहराते
पीपल के पत्तों को देखा है
मैंने तो देखा है
सुन हर-हर ध्वनि
मैं तो मंत्रमुग्ध हो जाता
हूँ
कभी जलतरंगों पर
चांदनी को देखा है
मैंने तो देखा है
थिरकता चाँद देख
मैं तो मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ
कभी सुबह और सांझ के
सूरज को देखा है
मैंने तो देखा है
अरुणिमा को देख
मैं तो मंत्रमुग्ध हो जाता
हूँ
कभी घनी रात में
आसमा को देखा है
मैंने तो देखा है
टिमटिमाते तारों को देख
मैं तो मंत्रमुग्ध हो जाता
हूँ
कभी किसी महफ़िल में
सुरों के साज को देखा है
मैंने तो देखा है
वादकों को झूमते देख
मैं तो मंत्रमुग्ध हो जाता
हूँ !
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