कवि की कल्पना का
यह कैसा आलोड़न,
भावों का क्षिप्र
प्रवाह
या मन का निःस्वास |
पीड़ा का यह व्यापार
,
शब्द जाल में बंद
भाव
खेल कर विचित्र दांव
,
कैश हो रहा भाव |
जीवन के दुःख और
द्वंद्व ,
उलझा हुआ रहस्य ,
शब्दों का कठिन जाल
सुलझाएगा कोई तार !
मन का हलका कर भार ,
चाह रहा अपना प्रसार
या अनुभूति का
व्यापार ,
अनुभव कर कहें वाह !
सिमट फिर पन्नों में
,
थैले में ढल ,
ढोएंगे ,
हल्दी , धनियाँ और
दाल
हिस्से में, प्रसिद्धि का ढाल !
हिस्से में, प्रसिद्धि का ढाल !
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