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Saturday, November 3, 2012

व्यापार


कवि की कल्पना का
यह कैसा आलोड़न,
भावों का क्षिप्र प्रवाह
या मन का निःस्वास |
पीड़ा का यह व्यापार ,
शब्द जाल में बंद भाव
खेल कर विचित्र दांव ,
कैश हो रहा भाव |                                                     
जीवन के दुःख और द्वंद्व ,
उलझा हुआ रहस्य ,
शब्दों का कठिन जाल
सुलझाएगा कोई तार !
मन का हलका कर भार ,
चाह रहा अपना प्रसार
या अनुभूति का व्यापार ,
अनुभव कर कहें वाह !
सिमट फिर पन्नों में ,
थैले में ढल , ढोएंगे ,
हल्दी , धनियाँ और दाल
हिस्से में, प्रसिद्धि का ढाल !

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