मैं हैरान सा हूँ..
चादर की सलवटों से
मेरे बैठने से
आड़ी तिरछी तमाम
सलवटें पड़ जाती हैं
मेरे इस चादर में..!
परेशानी का सबब ये
बे हिसाब सलवटें
क्योंकि-
मेरे इस चादर की सलवटों से
झाँकते हैं तमाम अँधेरे !
हाँ इन सलवटों की
तमाम गहराइयों में
छिपे बैठे हैं ये अँधेरे..!
बेचैन सा
बार-बार खींच कर
फैलाता मैं चादर
पर बेबस...
वैसी की वैसी ही
फिर से दिखाई दे जाती
सलवटें मेरे चादर की..!
---------------------------विनय
No comments:
Post a Comment