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Thursday, July 24, 2014

सलवटें मेरे चादर की..!


मैं हैरान सा हूँ..
चादर की सलवटों से
मेरे बैठने से
आड़ी तिरछी तमाम
सलवटें पड़ जाती हैं
मेरे इस चादर में..!

परेशानी का सबब ये  
बे हिसाब सलवटें
क्योंकि-
मेरे इस चादर की सलवटों से
झाँकते हैं तमाम अँधेरे !

हाँ इन सलवटों की
तमाम गहराइयों में
छिपे बैठे हैं ये अँधेरे..!

बेचैन सा
बार-बार खींच कर
फैलाता मैं चादर
पर बेबस...
वैसी की वैसी ही
फिर से दिखाई दे जाती
सलवटें मेरे चादर की..!
---------------------------विनय

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